शहद, एक हल्का पीलापन लिये हुए बादामी रंग का गाढ़ा तरल पदार्थ है। वैसे इसका रंग-रूप, इसके छत्ते के लगने वाली जगह और आस-पास के फूलों पर ज्यादा निर्भर करता है। यह एक पूर्ण तथा सुपाच्य खाद्य है। यह इतना निरापद है कि इसे नवजात शिशु को भी दिया जा सकता है। किसी भी घाव, चोट, खरोंच या किसी कीड़े के काटने पर इसे मल्हम की तरह लगा सकते हैं। आंखों में इसे किसी सलाई से सुरमे की तरह लगाया जा सकता है। थोड़ा लगता जरूर है, पर आंखों में चमक आ जाती है। उन्हें कमजोर होने से बचाता है। विश्वास के साथ इस लिए कह पा रहा हूं क्योंकि मैं खुद इसका उपयोग करता रहता हूं।
हमारे यहां जहां मुनाफे के लिए हर चीज में मिलावट होती है, वहां यह भी कहां बचा रह सकता है। भाई लोग शीरे को बिना हिचक इसमें मिला कर लोगों की सेहत से खिलवाड़ करते रहते हैं। इससे बचने के लिए असली शहद की पहचान कुछ ऐसे की जा सकती है –
1 :- असली शहद की एक बूंद को पानी से भरे गिलास में टपकायें। पूरी की पूरी बूंद तले तक जायेगी। जबकी नकली शहद पानी से टकराते ही बिखर जायेगा।
2 :- रुई की बत्ती बना उसे शहद में डुबो कर जलायें, वह मोमबत्ती की तरह जलती रहेगी।
3 :- अखबार या कपड़े पर शहद की बूंद गिरा कर पोछ दें, सतह उसे सोखेगी नहीं। जबकी नकली, कपड़े या कागज में जज्ब हो जायेगा।
4:- असली शहद पर मक्खी बैठ कर उड़ जायेगी जबकी नकली में वहीं फंस कर रह जाती है।
5 :- असली शहद कुत्ता नहीं खाता।
शहद हालांकि गुणों की खान है। फिर भी कुछ सावधानियां जरूर बरतनी चाहियें। जैसे इसे कभी गर्म कर ना खायें। गर्मी से पीड़ित मनुष्य के लिए भी यह हानीकारक होता है। इसके साथ बराबर मात्रा में घी, कमलगट्टा तथा वर्षा का पानी कभी भी नहीं लेना चाहिये। बस, तो ठंड आ रही है इस दिव्य पदार्थ का सेवन करें और सब से कहलवायें ,” आप की उम्र का तो अंदाज ही नहीं लगता”
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