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पतंजलि, बढ़ता मुनाफा, घटता सेवाभाव

kuchhalagsa.blogspot.com
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बाबा रामदेव, एक ऐसा नाम जिसने भारतीय जन-मानस की नब्ज समझ अपने #पतंजलि ब्रांड के व्यापार को ऐसी ऊचाइयों की ओर अग्रसर कर दिया जो नित नए मानक बनाते हुए आसमान की बुलंदियों से आँखें चार करने को तत्पर है। स्वामी जी ने बहुत नपे-तुले अंदाज से धीरे-धीरे लोगों के दिलो-दिमाग में पैठ बनाई। उनको

मालुम था कि आम भारतीय बाहर से चाहे कितना भी आधुनिक हो जाए, मन में कहीं ना कहीं वह अभी भी देशज जरूर है। साथ ही ये आकलन भी हो चुका था कि आजकल लोग अपने स्वास्थ्य को लेकर बहुत जागरूक रहने लगे हैं, बहुतों का अंग्रेजी दवाओं से मोहभंग हो चुका है, लोग स्वदेशी के नाम को प्रमुखता देने लगे हैं।  इसी से उन्होंने अपने व्यापार के भविष्य का सही अंदाजा लगा लिया। बहुत सोच-समझ कर रण-नीति तैयार की गयी। प्रतिस्पर्द्धा में वर्षों से जड़ें जमाए सिर्फ विदेशी ही नहीं कई स्वदेशी कंपनियां भी मजबूती से सामने खड़ी थीं। लोगों के मन से उनके उत्पादनों से मोहभंग करना और योग गुरु द्वारा बनाई वस्तुओं के प्रति आकर्षण उपजाना बहुत कठिन काम था, पर नामुमकिन नहीं। सबसे पहले टी. वी. पर, फिर चुने हुए शहरों में, फिर देश भर में कक्षाएं लगा कर स्वस्थ रहने के नुस्खे सुझाए गए, योग की महत्ता समझाई गयी, स्वदेशी को अपनाने का आह्वान किया गया। इसके साथ ही रोजमर्रा की कुछ गिनी-चुनी आवश्यक वस्तुओं को बाजार में प्रयोग के तौर पर प्रस्तुत भी कर दिया गया। लोगों ने उन्हें हाथों-हाथ लिया, इससे जाहिर है हौसला अफजाई तो होनी ही थी। सो अब व्यापक रूप से लोगों को विदेशी चीजों द्वारा होने वाले देश और जनता के नुक्सान को मुद्दा बनाने के साथ-साथ बाजार में #पतंजलि उत्पादों की बाढ़ ला दी गयी। फ्रेंचाइजी की जगह अपनी दुकानें खुलने

लगीं फिर उनको स्टोर और फिर मेगा-स्टोर में बदलने का काम शुरू हो गया। कमाई ने सारे रेकॉर्ड तोड़ दिए, स्थापित ब्रांडों की ऐसी-की-तैसी होने लगी। पढने-दिखने-सुनने वाले हर मीडिया पर बाबा रामदेव के सहारे पतंजलि छा गया। हम जैसे लोगों को अच्छा लगाने लगा कि अब विदेशी कंपनियों को नानी याद आएगी और नहीं तो कम से कम उचित मूल्य में सही सामान  मिलेगा !

मेरे जैसे बहुत से लोग विदेशी पर स्वदेशी को हावी होने देने की चाह में इस संस्थान से इसके शैशवास्था से ही जुड़े हुए थे। शुरू-शुरू में जब लोग इनकी वस्तुओं पर संशय जाहिर करते थे तो उन्हें अपना उदाहरण दे इन चीजों का प्रयोग करने को उत्साहित करते थे। पता नहीं कितने विदेशी मुरीदों को इस संस्था से जोड़ने के लिए क्या-क्या कहा, किया गया। पर अब आहिस्ता-आहिस्ता यह बात हम सब के दिलों में घर करने लगी है कि कहीं आँख मूँद कर स्वामी जी का अनुसरण कर बेवकूफी तो नहीं कर रहे। इनके प्राकृतिक, शुद्ध, स्वदेशी के चक्कर में भावनात्मक रूप से लुट तो नहीं रहे। इसका कारण भी सामने है। इनके बहुत सारे उत्पाद आर्डर दे कर दूसरी जगह तैयार किए जाते हैं, उनकी प्रमाणिकता का आकलन सही ढंग से होता भी है कि नहीं ? जितनी भारी संख्या में प्राकृतिक जड़ी-बूटियां बाज़ार में उपलब्ध हैं उतनी खुद प्रकृति भी

उपजा पाती है या नहीं ? सबसे बड़ी और अहम बात यदि संस्था को भारत और उसकी जनता से इतना ही लगाव है तो हर चीज इतनी मंहगी क्यों, कि उसे एक गरीब आदमी छू भी ना सके ? क्या बाबाजी या उनके सहयोगियों ने कभी सर्वे किया है कि उनकी औषधियां कितने सर्वहारा तक पहुँच पाती हैं ? क्या फर्क है इनकी स्वदेशी और दूसरों की विदेशी में जबकी दोनों का उद्देश्य तो एक ही रहा……..सिर्फ उपार्जन !!!

अब लोग तरह-तरह के सवाल भी उठाने लगे हैं। किसी भी दूसरी दूकान में आप जाएं, सौदा-सुल्फ लेने के बाद वह दुकानदार कोई झोला-थैली आपको जरूर उपलब्ध करवाता है। जिससे आपको अपना  में आसानी रहे। कहीं-कहीं तो ज्यादा सामान को घर तक पहुंचाने की व्यवस्था भी है। पर #पतंजलि मेगा स्टोर में यदि आप थैला लेंगें तो उसके 25/- अलग से लिए जाते हैं। अब कोई पूछे कि आपकी फ्रेंचाइजी वाले दुकानदार तो आपकी वस्तुओं पर पांच से दस प्रतिशत की छूट दे देते हैं पर आप अपने मेगा-स्टोर पर पांच रुपये भी नहीं छोड़ते, ऊपर से थैले के पैसे और धरवा लेते हो यह कैसा स्वदेशी प्रेम है ? अरे भाई ! यदि कोई आपके यहां से सात-आठ सौ, जो आपके यहां से खरीदारी की मामूली रकम है, का सामान लेता है तो आप उसे एक 20-25 रुपये का थैला भी नहीं दे सकते ?  तो अब क्या धारणा बने लोगों की ?

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