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कुछ वाकये सहसा पुरानी कहानिया याद दिला देते है, जैसे हंस और कौवा

kuchhalagsa.blogspot.com
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बचपन मे सुनी-पढ़ी कहानियां सदा ही सीख से भरी होती थीं। वे कभी भी अप्रसांगिक नहीं हुईँ । कारण भी है उन्हें यूं ही नहीं गढ़ दिया गया था।  उनमें अनुभवों का निचोड़ होता था। ऐसी ही एक कहानी है हंस और कौवे की।


एक बार कुछ हंसों का दल कहीं से उड़ता हुआ आया और अपने गंतव्य पर जाने के पहले एक वृक्ष पर अपनी थकान मिटाने के लिए उतर गया। वहीँ पर एक कौवा भी बैठा उनको आते हुए देख रहा था।  उसने बिना यह जाने कि वे कितनी दूर से आ रहे हैं, कहाँ जा रहे हैं, उनका मजाक उड़ाते हुए कहा कि तुम लोग एक ही तरह से धीमे-धीमे पंख हिला कर उड़ते हो, फिर भी बड़ी जल्दी थक जाते हो ! मुझे देखो मैं पचीसों तरह की कलाबाजियों के साथ तेज उड़ान भरने के बावजूद तरोताजा रहता हूँ। कभी निढाल नहीं होता।  हंसों के सरदार ने उसे समझाया कि तुम एक सिमित दायरे में रहने वाले पक्षी हो तुम्हें ज्यादा उड़ना नहीं पड़ता और अपनी हैसियत से ज्यादा कोशिश करनी भी नहीं चाहिए। पर हमें दूर-दूर तक उड़ान भरनी होती है, इसीलिए प्रकृति ने हमें उसी के अनुसार क्षमता व् पंख दिए हैं, यदि हम भी करतब दिखाने लगें तो अपने गंतव्य तक कभी भी नहीं पहुँच पाएंगे। पर नासमझ, घमंडी कौवा हंसों को नीचा दिखाने और अपने को श्रेष्ठ साबित करने पर तुला रहा। हंसों ने उसका जवाब ना देते हुए कुछ समय बाद फिर अपनी यात्रा शुरू कर दी। उनको जाते देख कौवा भी उनकी उड़ान का मजाक बनाते हुए और अपने कौशल के प्रदर्शन की नादानी दिखाते हुए उनके पीछे  लग गया। कुछ ही समय बाद वे लोग उड़ते हुए जमीनी हद को छोड़ समुद्र के ऊपर पहुँच गए। कौवा ना कभी लगातार इतना उड़ा था ना ही इतनी दूर आया था, परिणामस्वरूप उस पर इतनी थकान हावी हो गयी कि उसे लगने लगा कि वह कभी भी नीचे पानी में गिर कर अपनी जान गंवा सकता था। मौत को सामने देख उसकी सारी हेकड़ी गायब हो गयी,  उसने हंसों से अपने प्राण बचाने की गुहार लगाईं। उसकी दशा देख हंसों को उस पर दया आ गयी और उन सब ने मिल कर किसी तरह उसको वापस उसके क्षेत्र में पहुंचा दिया।


सपनों को पूरा करने में कोई बुराई नहीं है। पर उसके लिए अपनी तैयारी, अपनी क्षमता, अपनी औकात का एहसास होना बहुत जरुरी है। सिर्फ किसी को नीचा दिखाने के लिए ईर्ष्या या द्वेष की भावना से उठाया गया कदम कहीं का भी नहीं छोड़ता।

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