अपने देश में या यूं कहिए कि विश्व भर में हिंदू धर्म के पांच प्रमुख देवों में हनुमान जी का भी नाम है। इन्हें सबसे शक्तिशाली, अमर, अजेय, आशुतोष, विनम्र व दयालु माना जाता है। इनकी लोकप्रियता का कोई पारावार नहीं है। हिंदू तो हिंदू अन्य धर्मावलंबी भी इन्हें खूब जानते और मानते हैं। पर शायद इनकी विनम्रता और दयालुता का अर्थ कुछ लोगों ने अपनी तरह से परिभाषित कर, अपने लाभ के लिए, देश भर में, दक्षिणी भाग को छोड़ कर, जगह-जगह गली-नुक्कड़-पैदलपथ, पेड़ों के नीचे, दीवारों पर और न जाने कहां-कहां इनके चित्र या मूर्तियां लगा, धर्मभीरु आम जनता को बरगला कर, उनकी भावनाओं को उभाड़, अपनी रोटी सेकनी शुरू कर दी !!
इस तरह के मंदिरों के तरह-तरह के लोक-लुभावन नाम रखे जाते हैं, जैसे दक्षिण मुखी, सर्व कामना, प्राचीन, बालाजी इत्यादि। आपने भी हनुमान जी के मंदिरों के अलग-अलग नाम सुने होंगे पर मेरा दावा है, मैं जो बताने जा रहा हूँ, वह नाम आपने शायद ही कभी सुना होगा ! नई दिल्ली के जनकपुरी इलाके के सुपर स्पेसियालिटी अस्पताल से दशहरा पार्क होते हुए डिस्ट्रिक सेंटर जाने वाली सड़क के पासंगीपुर मोड़ के कुछ आगे फुटपाथ पर अतिक्रमण कर उस जगह को नाम दिया गया है “श्री ग्रेजुएट बालाजी धाम”, जी हाँ, यह नाम है उस जगह का जिसे कुछ वक्त पहले पैदल चलने वालों की कठनाइयों-परेशानियों को दरकिनार कर, पैदल-पथ को अजीबोगरीब तरीके से घेर कर, सिर्फ धनोपार्जन के लिए बनाया गया है। जो इसके रख-रखाव से साफ़ जाहिर होता है। 8 x 3 की तंग सी अंधेरी जगह में एक थड़े के ऊपर करीब दो फुट की हनुमान जी की मूर्ति स्थापित कर उसकी अर्चना जैसा कुछ करना शुरू कर दिया गया है।
वहां जा कर बात करने की इच्छा होते हुए भी जाना नहीं हो पाता था पर कल शाम को वहां पहुँच ही गया। करीब साढ़े छः का समय था, एक आदमी मलिन से टी-शर्ट, पैंट पहने, मुंह को गंदे से कपडे से लपेटे वहां रखी मूर्तियों की आरती जैसा कुछ कर रहा था। काम ख़त्म होने पर मुझे नमस्ते की और मेरे कहने पर अपने चेहरे से कपड़ा हटाया। लगा कि वह नहाया हुआ भी नहीं है। मैंने सीधा प्रश्न यही किया कि जगह का इस तरह का नाम रखने की कैसे सूझी ? वह कुछ हडबडाया, पर मेरे कहने पर कि मैं विरोध नहीं कर रहा हूँ सिर्फ औचित्य जानना चाहता हूँ, बोला कि मैं तो सिर्फ देख-रेख करता हूँ असल वाले बाबा जी गांव गए हुए हैं। मेरे यह पूछने पर कि आपके इस मंदिर को बनाते समय और नामकरण के समय तो कई लोग होंगे जिन्होंने ऐसे नाम का सुझाव दिया होगा या फिर आपके बाबाजी ग्रेजुएट हैं जिन्होंने कहीं काम ना मिलने पर हनुमान जी की शरण ली है ? पर उस बंदे के पास कोई जवाब नहीं था। मैंने उसे दिलासा दी कि मैं किसी अखबार वगैरह से नहीं हूँ सिर्फ जिज्ञासावश यहां चला आया हूँ, तो चलो यही बताओ कि इस जगह ऐसा
करने की कैसे सूझी ? अब तक वह थोड़ा खुल चुका था, बताया कि यहां वर्षों से रह रहा है। आस-पास की कालोनियों में जो काम मिलता है कर लेता है। साथ की दिवार पर पता नहीं कब-कौन एक दो मूर्तियां रख गया था। जब आने-जाने वाले राहगीरों को यहां रुक कर उन्हें प्रणाम करते देखा तो यहां छत डालने का विचार आया। मेरे पूछने पर कि किसी ने रोका नहीं, तो दृढ़ता से जवाब दिया, सालों से यहां रह रहे हैं, आते हैं ‘पैलिटी’ वाले, ‘पोलिस’ वाले, पर हम हटेंगे नहीं ! मैंने पूछा कि लोग आते हैं, चढ़ावा चढ़ता है ? जवाब मिला, मंगल-शनि भीड़ होती है, लोग जुटते हैं, चढ़ावा भी चढ़ता है। मेरे लिए इतना ही काफी था !
भले आदमी का नाम मालुम है, पर यहां उजागर करने से क्या हासिल ? देश भर में हजारों-लाखों ऐसे मिल जाएंगे जो भगवान को घर मय्यसर करवा रहे हैं !! उन पर वह मेहरबान है तो………
This website uses cookie or similar technologies, to enhance your browsing experience and provide personalised recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy. OK
Read Comments