मुंबईकर बहुत खुशनसीब हैं जो प्रकृति उन पर पूरी तरह मेहरबान है। यहां सागर – पहाड़ का दुर्लभ मेल उपलब्ध है। समुद्र तो खैर उनके आँगन में उछालें मारता ही है, मनोरम पहाड़ी सैर – गाहें भी उनके बहुत करीब हैं। ऐसी ही एक मनोरम जगह है “महाबलेश्वर”, जहां प्रकृति उदात्त रूप में अपनी छटा बिखेरती विद्यमान है।
महाबलेश्वर की ओर
मार्ग में पड़ती सुरंग
महाबलेश्वर
महाबलेश्वर सहयाद्रि पर्वत श्रृंखला में स्थित है। अंग्रेज अपने शासन-काल में गर्मी के दिनों में अपना काम-काज यहां से निष्पादित किया करते थे। मुंबई से करीब 285 की.मी., पुणे से लगभग 120 की.मी. और पंचगनी से मात्र 19 की.मी. की दूरी पर तीन गांवों से घिरा एक छोटा सा शहर है जो समुद्र तल से करीब 1,353 मीटर की ऊंचाई पर कृष्णा नदी की घाटी में स्थित है। पर्यटकों के लिए यहाँ दसियों ऐसे पर्यटक स्थल हैं जहां जा कर समय के गुजरने का एहसास ही नहीं हो पाता।
महाबलेश्वर शिव मंदिर
निडल प्वाइंट
पुराने महाबलेश्वर में शिव जी का एक प्राचीन मंदिर है। जिसके दर्शन जरूर करने चाहिए। इसके अलावा आर्थर सीट, मैप्रो गार्डन, निडल प्वाइंट, प्रताप गढ़ किला, विल्सन प्वाइंट, सन सेट प्वाइंट आदि दर्जनों मनोहारी जगहें हैं। इसलिए जब भी जाना हो कुछ समय अपने हाथ में जरूर रखें।
वृक्ष संरक्षक
सुस्ताहट
महाबलेश्वर मॉल रोड
पंचगनी से हम 20-25 मिनट में महाबलेश्वर पहुँच गए। पंचगनी के पठार ने कुछ थका दिया था, अप्रैल का अंतिम सप्ताह था, धूप तेज हो रही थी, समय भी करीब दो बजे का हो रहा था, इसलिए सर्वसम्मति से पहले उदर-पूजन करना ही उचित समझा गया। पुणे से चलने के पहले होटेल पैनोरमा का नाम उसके अच्छे खाने के लिए सुझाया गया था। सुझाव सटीक निकला खाना सुस्वादु था। पर उसके बाद कुछ ऐसी खुमारी चढ़ी कि दसियों जगहें देखने वाली होने के बावजूद हिम्मत नहीं हो पाई कहीं और भी जाएं। सो बाजार के ही चक्कर लगा कर संतोष करते रहे। शाम को चार बजे लौटने की प्रक्रिया शुरू हुई। मुख्य मार्ग पर ही स्थित पारसी प्वाइंट पर जरूर रुकना हुआ।
पारसी प्वाइंट
यह एक पिकनिक स्थल है। जहां पार्क के साथ ही खाने-पीने का फुटकर सामान प्रचुरता के साथ उपलब्ध है। यहां से घाटी का अपूर्व व विहंगम नजारा देखने को मिलता है। इसके नाम के बारे में पूछने पर पता चला कि यह जगह पारसी समुदाय की मिल्कियत थी जिसे उन्होंने जन-हित के लिए सरकार को दे दिया था इसीलिए इसे पारसी प्वाइंट के नाम से जाना जाता है। यहां दिन भर लोगों की आवा-जाही लगी रहती है फिर भी पार्किंग शुल्क नहीं लिया जाता। घंटा भर यहां गुजारने के बाद गाडी का मुंह पूना की तरफ कर दिया गया जहां घर पहुंचते-पहुंचते घडी की सूई नौ के पास जाने को बेताब हो रही थी।
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