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साहस, त्याग और प्रेम से दुनिया भर में अपनी जाति का नाम रौशन किया था। इनमें से कुछ को तो आज भी आदर-सम्मान से देखा जाता है और उनकी पूजा-अर्चना भी की जाती है। ऐसा ही एक नाम है गयासुर। कथाओं के अनुसार भस्मासुर के वंशज गयासुर ने अपनी कठोर तपस्या के बल पर विष्णु भगवान् से यह वर प्राप्त कर लिया कि उसका शरीर समस्त तीर्थों के बनिस्पत अधिक पवित्र हो जाए।जो भी उसे देखे या उसका स्पर्श कर ले उसे यमलोक नहीं जाना पड़े। ऐसा व्यक्ति सीधे विष्णुलोक जाए।
भगवान ने उसे यह वरदान दे तो दिया पर इसका बड़ा ही अप्रत्याशित फल हुआ। अब गयासुर को देख कर ही लोग मुक्ति पाने लग गए। पापी लोग भी स्वर्ग जाने लग गए। यमलोक सूना पड़ गया, देवताओं के लिए यज्ञ होने बंद हो गए। जिससे देवताओं को हविष्य मिलना बन्द हो गया परिणामस्वरूप उनकी शक्ति क्षीण होने लगी। देवलोक में घबड़ाहट फ़ैल गयी। सब घबरा कर ब्रह्मा जी के पास गए। विचार-विमर्श के बाद फिर देवताओं ने फिर छल का सहारा लिया। ब्रह्मा जी गयासुर के पास गए और उससे कहा कि देवता एक ख़ास यज्ञ करना चाहते हैं जिसके लिए पवित्र स्थान चाहिए और तुम्हारे शरीर से पवित्र तो कोई जगह है ही नहीं तो तुम अपने शरीर को इस काम के लिए प्रस्तुत करो। गयासुर इसके लिए तैयार हो गया और उत्तर की तरफ
पांव और दक्षिण की ओर मुख करके लेट गया। गयासुर के पीठ पर सभी देवताओं के बैठने के बावजूद वह स्थिर नहीं हो पा रहा था इसलिए एक भारी भरकम शिला, जो आज भी प्रेत शिला कहलाती है, को भी उसके ऊपर रखा गया पर कोई असर न पड़ता देख गदा धारण कर विष्णु जी भी उस पर बैठे तब जा कर उसका शरीर स्थिर हुआ। तब प्रभू ने गयासुर को वरदान दिया कि जब तक यह धरती रहेगी तब तक ब्रह्मा, विष्णु और
भी हिस्से से आसानी से जाया जा सकता है। धार्मिक दृष्टि से यह न सिर्फ हिन्दूओं के लिए बल्कि बौद्ध धर्म मानने वालों के लिए भी तीर्थस्थल है। बौद्ध धर्म के अनुयायी इसे महात्मा बुद्ध का ज्ञान क्षेत्र मानते हैं जबकि हिन्दू गया को मुक्तिक्षेत्र और मोक्ष प्राप्ति का स्थान मानते हैं।इसलिए हर दिन देश के अलग-अलग भागों से नहीं बल्कि विदेशों में भी बसने वाले हिन्दू गया आकर अपने परिवार के मृत व्यकित की आत्मा की शांति और मोक्ष की कामना से श्राद्ध, तर्पण और पिण्डदान करते हैं।
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