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दिवाली पर जुआ खेलने वालों के हैं अपने तर्क

kuchhalagsa.blogspot.com
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दिवाली, प्रकाश का पर्व। बुराई पर अच्छाई की जीत का त्यौहार। खुशियां बांटने-पाने का समय। सुख-समृद्धि के लिए माँ लक्ष्मी की पूजा-अर्चना कर उनका आशीर्वाद पाने का अवसर। छोटा-बड़ा, बाल-वृद्ध, स्त्री-पुरुष, अमीर-गरीब, दिवाली के त्यौहार को लेकर हर कोई बहुत उत्साहित रहता है। पूरे वर्ष भर इसका इंतजार रहता है सबको। इसके आने के काफी समय पहले इसके स्वागत की तैयारियां प्रारंभ हो जाती हैं।



पर जैसे हर अच्छाई के साथ कोई न  कोई बुराई भी जुड़ी रहती है, वैसे ही पता नहीं कैसे इस पावन पर्व के साथ जुआ खेलने की प्रथा भी जुड़ती चली गयी। जुआ खेलने वालों के अपने तर्क हैं। उनके अनुसार इसी दिन शिव-पार्वती ने भी द्युत-क्रीड़ा की थी। इसीलिए इस दिन लोग जुआ खेलते हैं, जबकि किसी भी पौराणिक ग्रंथ में इस बात की पुष्टि नहीं होती। यह विडंबना ही है कि लोग पुराणों में लिखी अच्छाइयों को अंगीकार नहीं करते पर सुनी-सुनाई बुराई को अपनाने में जरा भी नहीं सोचते।


कुछ लोगों का ऐसा भी मानना है कि दिवाली पर जुआ खेलने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और आपके पास से कहीं नहीं जातीं। लेकिन क्या ऐसा संभव है कि देवी-देवता किसी बुराई वाली चीज पर खुश होते हों? उल्टा इस दिन जुआ खेलने से घर की लक्ष्मी के साथ-साथ सुख शांति भी चली जाती है। माँ लक्ष्मी खुद कहती हैं कि वे वहीं रहना चाहती हैं, जहाँ मधुर बोलने वाले, अपने कर्तव्य को निष्ठापूर्वक पूरा करने वाले,  ईश्वर भक्त,  इन्द्रियों को वश में रखने वाले,  व्यवहार से उदार,  माता-पिता की सेवा करने वाले, क्षमाशील, दानशील, बुद्धिमान, दयावान और गुरु की सेवा करने वाले लोगों का वास होता है। धन का अपव्यय करने वाले और दूसरे का धन हड़पने वाले लोगों से मैं हमेशा दूर रहती हूँ।




वैसे तो जुए को एक खेल ही माना जाता है पर यह ऐसा खेल है जो घर-परिवार को अशांति ही प्रदान करता है। सामाजिक बुराइयों का प्रतीक होने के बावजूद लाखों लोग इसे खेलते हैं। हालाँकि हर युग में इसकी बुराई ही सामने आई है। महाभारत के जुए के परिणाम को कौन नहीं जानता? एक चक्रवर्ती सम्राट हुए थे नल, उन्हें भी जुए से बहुत लगाव था और उसी के कारण वे महल, राजपाठ और यहाँ तक कि अपनी सेना भी हार गए थे। उनकी हालत ऐसी हो गई कि उन्हें अपने तन के कपडे भी दांव पर लगाने पड़ गये और वे सब कुछ हारकर चक्रवर्ती सम्राट से रंक बन गए।



इसी तरह एक और कथा से पता चलता है कि श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम को भी जुआ खेलने और हारने पर अपमान का सामना करना पड़ा था। भले ही यह अनंत काल से खेला जाने वाला खेल हो पर इससे आज तक किसी का भला नहीं हुआ, उल्टे घर-परिवार हर काल में बर्बाद जरूर हुए हैं। इसलिए सभी को अधर्ममय आचरण से बचकर ही रहना चाहिए, जिससे घर-परिवार में सुख-शांति का स्थाई निवास बना रहे। हम सबको अपने तीज-त्योहारों के साथ आ जुड़ी या जोड़ दी गयीं तरह-तरह की बुराइयों को दूर कर अपने उत्सवों की गरिमा को बनाए रखने के लिए कटिबद्ध होना ही होगा, जिससे आने वाली पीढ़ियां भी उनके महत्व को समझ सकें।

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