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दिवाली, प्रकाश का पर्व। बुराई पर अच्छाई की जीत का त्यौहार। खुशियां बांटने-पाने का समय। सुख-समृद्धि के लिए माँ लक्ष्मी की पूजा-अर्चना कर उनका आशीर्वाद पाने का अवसर। छोटा-बड़ा, बाल-वृद्ध, स्त्री-पुरुष, अमीर-गरीब, दिवाली के त्यौहार को लेकर हर कोई बहुत उत्साहित रहता है। पूरे वर्ष भर इसका इंतजार रहता है सबको। इसके आने के काफी समय पहले इसके स्वागत की तैयारियां प्रारंभ हो जाती हैं।
वैसे तो जुए को एक खेल ही माना जाता है पर यह ऐसा खेल है जो घर-परिवार को अशांति ही प्रदान करता है। सामाजिक बुराइयों का प्रतीक होने के बावजूद लाखों लोग इसे खेलते हैं। हालाँकि हर युग में इसकी बुराई ही सामने आई है। महाभारत के जुए के परिणाम को कौन नहीं जानता? एक चक्रवर्ती सम्राट हुए थे नल, उन्हें भी जुए से बहुत लगाव था और उसी के कारण वे महल, राजपाठ और यहाँ तक कि अपनी सेना भी हार गए थे। उनकी हालत ऐसी हो गई कि उन्हें अपने तन के कपडे भी दांव पर लगाने पड़ गये और वे सब कुछ हारकर चक्रवर्ती सम्राट से रंक बन गए।
इसी तरह एक और कथा से पता चलता है कि श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम को भी जुआ खेलने और हारने पर अपमान का सामना करना पड़ा था। भले ही यह अनंत काल से खेला जाने वाला खेल हो पर इससे आज तक किसी का भला नहीं हुआ, उल्टे घर-परिवार हर काल में बर्बाद जरूर हुए हैं। इसलिए सभी को अधर्ममय आचरण से बचकर ही रहना चाहिए, जिससे घर-परिवार में सुख-शांति का स्थाई निवास बना रहे। हम सबको अपने तीज-त्योहारों के साथ आ जुड़ी या जोड़ दी गयीं तरह-तरह की बुराइयों को दूर कर अपने उत्सवों की गरिमा को बनाए रखने के लिए कटिबद्ध होना ही होगा, जिससे आने वाली पीढ़ियां भी उनके महत्व को समझ सकें।
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