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जवाब तो जिम्मेदारों से मांगा जाना चाहिए !!

kuchhalagsa.blogspot.com
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अभी पिछले दिनों अखबारों में करोलबाग़ और झंडेवाला के बीच स्थित संकट मोचन धाम की, क़ुतुब मीनार की तरह दिल्ली की पहचान सी बन गयी, 108′ ऊँची हनुमान जी की मूर्ति को हटाने की काफी चर्चा रही। तय है कि इस पर तरह-तरह के विवाद भी जन्म लेंगे ! हम ज्यादातर धर्म-भीरु लोग हैं। हमें इससे कोई मतलब नहीं

कि फलाना मंदिर कहाँ बना, कैसे बना, किसने बनवाया, क्यूँ बनवाया ! वहाँ विधिवत पूजा होती भी है कि नहीं, पूजा करने वाले को इस विधा का ज्ञान है भी कि नहीं !  हमें तो सिर्फ वहाँ स्थापित मूर्ति से मतलब होता है ! फिर चाहे वह विवादित स्थल पर बनी हो, चाहे नाले पर, चाहे सड़क के किनारे, चाहे कूड़ेदान के पास या फिर किसी पेड़ के नीचे ही कुछ रख दिया गया हो ! लोगों की आस्था और भावनाओं का फायदा उठा कुछ भी कहीं भी बना दिया जाता है और लोग पहुँच जाते हैं पैसा चढ़ाने, मत्था टेकने, मन्नत मांगने ! विश्वास नहीं होता तो आइए जनकपुरी के “ग्रैजुएट बालाजी धाम” जो डिस्ट्रिक सेंटर के कुछ पहले, पैदल पथ पर बना हुआ है। लोग मंगल-शनि यहां चढ़ावा चढ़ा मन्नतें माँगते हैं। जबकि इसकी एक दीवाल पर शीशा टांग हजामत भी बनाई जाती है और वही सज्जन आरती वगैरह का जिम्मा भी उठाते हैं: वह भी कभी-कभी बिना नहाए-धोए ! पर हमें इन सब चीजों से कोई मतलब नहीं है ! हमें तो अपनी मनोकामना की पूर्ती चाहिए, बस !!

शातिर लोग जानते हैं कि मानव इच्छा चीज ही ऐसी है जो कई बार बिना कहीं गए प्रभू की अनुकंपा से ही, बिना मन्नत के भी पूरी हो जाती है, सौ-पचास में पांच-सात तो ऐसे लोग होते ही हैं। जब उनका काम हो जाता है तो श्रद्धा-वश वे सारा श्रेय उस जगह को देने लगते हैं और उनके  इस मुख-प्रचार  (mouth publiity)  से सैंकड़ों लोग

वहाँ पहुँचने लगते हैं और उन ठगों की बन आती है। लोगों की यादाश्त तो कमजोर होती ही है जिससे कुछ ही दिनों बाद ऐसी जगहें “प्राचीन” और “सिद्ध” जैसे विशेषणों से सुशोभित होने लगती हैं ! सवाल यह नहीं है कि ऐसे पूजा स्थल क्यूँ बन रहे हैं: सवाल यह है कि यदि जगह विवादित, सरकारी, हथियाई गयी या घेरी गयी है तो वहाँ निर्माण की इजाजत किसने दी ? क्योंकि बिना किसी का पीठ पर हाथ हुए कोई ऐसी हिम्मत कर ही नहीं सकता ! कोई आम आदमी एक ठेला तो लगा कर  दिखा दे सड़क के किनारे: शाम होते-होते उसे छठी का दूध न याद दिला दें पुलिस और कमेटी वाले तो कहिएगा ! पर सारे देश में हजारों-लाखों ऐसी जगहें बना दी गयी  हैं जहां चंट लोग बिना हरड-फिटकरी लगाए करोड़ों का वारा-न्यारा कर रहे हैं। जवाब तो उनसे माँगा जाना चाहिए जिनकी इजाजत के बगैर कहीं एक ईंट भी नहीं लग सकती पर उनकी ही मेहरबानी से सारे देश में कुकुरमुत्तों की तरह पूजा स्थल उगते जा रहे है !

अब इस मंदिर को ही लें, जिसको बनने में करीब तेरह साल लगे, मूर्ति कोई तीन-चार फिट की नहीं जो किसी को दिखी ही ना हो, वह भी दिल्ली के बीचो-बीच, सबकी निगाहों में ! फिर कैसे, किसकी शह पर, बिना किसी डर व  झिझक के आस-पास अतिक्रमण होता चला गया ? कौन हैं वे लोग जिनको इंसान तो क्या भगवान् का भी डर नहीं ! क्यों नहीं मंदिर के आस-पास की सफाई के पहले उनकी धुलाई की जाए, जिससे भविष्य में कोई  ऐसी बेजा हरकत करने के पहले दस बार सोचे ! पर कड़वी सच्चाई यही है कि हमारे देश में रसूख और जुगाड़ बहुत बड़ी बीमारी है जिसका इलाज बहुत मुश्किल है ! मुश्किल तो है पर लाइलाज नहीं है। एक बार इस तरह के लोगों के गिरेबान पर कानून का शिकंजा कस जाए तो काफी हद तक इस नासूर से मुक्ति मिल सकती है। पर फिर वही दक्ष-प्रश्न आ खड़ा होता है कि ऐसा करेगा कौन ? कौन हिम्मत जुटाएगा ?

#हिन्दी_ब्लागिंग

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