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दवा की कीमतों का चक्रव्यूह

kuchhalagsa.blogspot.com
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#हिन्दी_ब्लागिंग

पिछले हफ्ते कुछ व्यापारियों द्वारा बिल को लेकर ग्राहकों को गुमराह करते पाया था, जिसका न कोई उल्लेख करता है ना हीं उस पर ध्यान दिया जाता है ! ऐसा ही एक और रहस्य है, वस्तुओं के कवर पर छपा उसका M.R.P. यानी  अधिकतम खुदरा मूल्य। मतलब इससे अधिक मूल्य पर उस वस्तु को नहीं बेचा जा सकता। यह कीमत निर्माता अपने सारे खर्चे और खुदरा विक्रेता के लाभांश को जोड़ कर तय करता है। पर यह लाभांश कितना होना चाहिए इसका कोई निर्देश है कि नहीं पता नहीं !

पिछले दिनों श्रीमती जी के लिए शुगर चेक करने वाली स्ट्रिप के बारे में पता चला था कि भागीरथ प्लेस में यह काफी सस्ती मिल जाती हैं। इस बार जबा ख़त्म हुई तो वहीँ से लाने की सोची। पर कंधे छिलती, एक-दूसरे को धकियाती, सड़क तक को घेरे भीड़ में से रास्ता बनाते, पुरानी दिल्ली की कुंज गलियों को पार करते, सामान से अटी पड़ी राहों में किसी तरह निकल, भागीरथ प्लेस की पुरानी सीढ़ियों को फलांग जब दवा मिली तो उसकी कीमत देख हैरानी की सीमा ना रही। जो चीज अब तक 875/- में लेते रहे थे वह मात्र 470/- में मिल रही थी। जबकि उस पर M.R.P. 999/- दर्ज था ! यही हाल शुगर परिक्षण में काम आने वाली सुइयों का भी था, 100-150/- में मिलने वाला इनका पैकेट मात्र 50/- में मिल रहा था ! मन में तुरंत नकली-असली का संदेह आया पर बिल तो ले ही लिया था। वहाँ से निकल चांदनी-चौक आकर ऐसे ही एक बड़ी सी दवा-दूकान पर उसी स्ट्रिप के बारे में पूछा तो कीमत 750/- और सूइयों की 100/- बताई गयी ! आधा की.मी. से भी कम की दूरी में ही 300/- और 50/- का फर्क ! यही चीज जनकपुरी तक पहुंचते-पहुंचते उनके हिसाब के मुताबिक 999/- + 250/- का दस-बारह प्रतिशत कम कर 875/- + 200/- की मिलती है। कीमतों का फर्क देख वस्तु की गुणवत्ता पर शंका हो जाती है। सो उसका भी क्रास चेक किया गया तो नतीजा एक सा ही मिला। इस तरह की और ऐसी ही प्राण-रक्षक दवाओं पर इतना लाभांश ? सौ-सौ गुना ज्यादा ? यह सोचने और विचारने का विषय है।


M.R.P. छापना और उससे ज्यादा न लिया जाना उपभोक्ता के हित में हो सकता है पर वह कीमत जायज है कि नहीं इस पर शायद ध्यान नहीं दिया जाता ! खासकर दवाओं के मामले में। दवा खरीदते समय शायद आपने ध्यान दिया होगा कि बिल पर दवा विक्रेता कुछ न कुछ रियायत देता है, जो पांच से बारह प्रतिशत तक कुछ भी हो सकती है। हम बिना उसका उचित मूल्य जाने उसी में खुश हो जाते हैं और दस प्रतिशत वाले को अपना स्थाई दुकानदार बना लेते हैं: बिना ज्यादा खोज-खबर किए ! दवा निर्माता जब M.R.P. निर्धारित करता है तो उसके दिमाग में सिर्फ खुदरा विक्रेता का ही हित ही क्यों होता है ? क्यों आम इंसान को ही हर बार बली का बकरा बनाया जाता है ? कोई जिम्मेवार इस ओर ध्यान देगा ? लगता तो नहीं ! पर आवाज तो उठनी चाहिए !!

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